Wednesday 20 November 2013

hindi story ( khun ka rang ) vikram baital


खून का रंग

‘‘सुनो राजा विक्रम ! अंधक देश का राजा बड़ा ही प्रतापी और दयालु था। उसका राज्य दूर तक फैला था। राजा स्वयं अपनी प्रजा के दुख सुना करता था और यथासंभव सहायता दिया करता था। एक दिन राजा के दरबार में एक वैश्य आया। उसके साथ तीन लड़के भी थे, पर सब के सब अंधे थे वह राजा को प्रणाम कर चुपचाप खड़े हो गये थे।
‘‘राजन, मैं इस समय बहुत संकट में में हूं। आप कृपया मुझे हजार स्वर्ण मुद्राएं ऋण दें। मैं छः माह बाद वापस कर दूँगा।’’ वैश्य ने कहा।
‘‘ऐसी क्या आवश्यकता आ गयी सेठ ?’’
‘‘राजन मैं व्यापार के लिए विदेश जाऊँगा।’’
राजा चुप रह गया।

वैश्य बोला- ‘‘राजन ! स्वर्ण मुद्राओं के बदले मैं अपने तीनों बेटों को आपके पास गिरवी रखे जा रहा हूँ।’’
‘‘पर वह तो अंधे है उनका क्या उपयोग हैं ?’’

‘‘ऐसा न कहें राजन मेरे तीनों बेटें बड़े गुणी हैं। पहला लड़का घोड़े की पहचान में अद्वितीय है। दूसरा लड़का आभूषणों का अद्भुत पारखी है। तीसरा लड़का शास्त्रों का पारखी है।’’
‘‘पर अंधे होकर ....?’’ राजा को आश्चर्य हुआ।
‘‘राजा ! वे स्पर्श और गंध के आधार पर कार्य करते हैं अगर इनकी एक बात भी गलत निकले तो आप इनकी गर्दन उड़ा देना। मेरे आने पर मुझे भी दंड़ देना। आपके राजकाल में तीनों बेटे आपकी सेवा करेंगे।’’
राजा मान गया। उसने वैश्य की मांग पूरी कर दी। राजा ने तीनों लड़कों के खान-पान तथा रहने की उचित व्यवस्था की। राजा विक्रम इस प्रकार कुछ समय बीत गया, तो घोड़ों का एक व्यापारी आया।

उसने एक बड़ा सुन्दर घोड़ा दिखलाया। वह घोड़ा देखकर राजा का मन ललचा गया और उसे खरीदने को तैयार हो गया।
‘‘एकदम काबुली घोड़ा है अन्नदाता !’’ सौदागर बोला-‘‘बड़ी मेहनत से आपके पास लाया हूँ।’’
सौदागर ने बड़ा ऊंचा दाम बतलाया। पर राजा खरीदने के लिए तैयार हो गया। फिर यकायक राजा ने हुक्म दिया -‘‘वैश्य के बड़े पुत्र को बुला लाओ।’’
तुरन्त वैश्य पुत्र को पेश किया गया।
‘‘आज्ञा राजन !’’

यह घोड़ा देखकर बतलाओ—‘‘कैसा है ?’’
‘‘जो आज्ञा सरकार।’’
वह टटोलकर घोड़े के पास गया। एक अंधे को घोड़ा परखते देखकर सौदागर मुस्करा पड़ा; और लोग भी मंद-मंद मुस्करा रहे थे। भला अंधा घोड़े की क्या पहचान कर सकता है। वह लड़का घोड़े को सूंघने लगा, तो सौदागर बोला- ‘‘बस करो भाई कहीं घोड़ा भी सूंघकर परखा जाता है।’’
वैश्य का लड़का घोड़े पर हाथ फेर-फेरकर उसको जगह-जगह पर सूंघता रहा। कुछ देर बाद वह अलग हट गया।
‘‘कैसा घोड़ा है ?’’ पूछा राजा ने।
‘‘राजन ! यह घोड़ा भूलकर भी न खरीदें।’’
‘‘क्या बात है ?’’
‘‘हाथ कंगन को आरसी क्या। किसी को बैठाकर परख लें।’’
राजा ने एक सैनिक को आदेश दिया। वह घोड़े पर बैठा। कुछ दूर जाकर घोड़े ने उसे पटक दिया। फिर बुरी तरह हिनहिनाने लगा।
सौदागर आश्चर्यचकित रह गया और बोला ‘‘राजन यह घोड़ा मेरे साथ ऐसा नहीं करता।’’ तभी अंधा बोल उठा ‘‘तुम्हारे साथ क्या हर ग्वाले के साथ ऐसा नहीं करेंगा। तुम ग्वाले हो गाय-भैंस का व्यापार छोड़कर घोड़े का व्यापार कर रहे हो।’’
‘‘मैं ग्वाला हूँ तुम को कैसे पता ?’’

‘‘यह घोड़ा तुम्हारे घर ही जन्मा है। इसके माँ—बाप भी तुम्हारे पास थे तुमने इस घोड़े को भैंस का दूध पिलाया है। इसकी महक से मैं समझ गया।’’
सौदागर चकित रह गया वैश्य का लड़का एकदम सच कह रहा था
‘‘तुमने कैसे जाना।’’

‘‘सूंघकर।’’
सौदागर हाथ जोड़कर चला गया। राजा वैश्य के उस अंधे लड़के पर प्रसन्न हो गया। राजा ने आदेश दिया-‘‘इसकी खुराकी दुगुनी कर दी जाए।’’ राजा ने वैश्य की बात सच पाई।
इस प्रकार हे राजा विक्रम ! राजा के तीनों लड़के आनन्दपूर्वक रह रहे थे कि एक दिन एक जौहरी आया। उसने नाना प्रकार के हीरे-जवाहारात राजा को दिखाने शुरू कर दिए राजा ने कुछ जवाहरात पसन्द किए।
‘‘फिर हुक्म दिया-‘‘वैश्य के दूसरे लड़के को बुलाकर ला।’’

वैश्य का दूसरा अंधा लड़का आया। राजा ने उसे अपनी पसन्द के जवाहरात परखने को कहा। वह लड़का टटोलकर परखने लगा। कुछ सुन्दर जवाहरात उसने अलग कर दिए। फिर वह बोला, ‘‘इनको आप न ले।’’
‘‘क्या बात है ?’’

‘‘अशुभ हैं ये सब। कम से कम लाल तो महाअशुभ है, जिसके पास आता है, उसके परिवार के एक सदस्य की मृत्यु हो जाती है। जौहरी इस बात को जानता है।’’ उस लड़के की बात सुनकर जौहरी बेतरह घबरा गया।
राजा ने पूछा सच बोलना जौहरी क्या यह सच्ची बात है।’’

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