जानिए, ब्रह्मांड की 13 बातें...
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वेद, पुराण और गीता पढ़ने के बाद हमने जाना कि ब्रह्मांड में सबसे बड़ी कौन-सी ताकत है। बहुत से लोग यह जानना चाहते होंगे। इसके लिए हमने क्रमवार कुछ खोजा है।
उपनिषदों में प्रश्न-उत्तरों के माध्यम से ऋषियों ने इस ब्रह्मांड के रहस्य को अपने शिष्यों के सामने उजागर किया और फिर अपनी शिक्षाओं में उन्होंने सत्य, अहिंसा, ब्रह्मचर्य आदि की शिक्षा दी। उनकी तमाम शिक्षाओं में भी ब्रह्मचर्य को उन्होंने सबसे प्रधान माना। ब्रह्मचर्य को उन्होंने जीवन में सबसे महत्वपूर्ण माना।
ब्रह्मचर्य से बढ़कर कुछ नहीं। ब्रह्मचर्य से शक्ति, सेहत और समृद्धि मिलती है, लेकिन ब्रह्मचर्य से बढ़कर भी कुछ है।
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अन्न ही ब्रह्म : अन्न ही ब्रह्मचर्य से बढ़कर है। अन्न और धरती पर पाई जाने वाली सभी वनस्पतियों की हमारे ऋषि-मुनि प्रार्थना करते थे। अन्न हमें ओज और ब्रह्मचर्य प्रदान करता है। अन्न हमारे लिए अमूल्य पदार्थ है। अन्न के बगैर व्यक्ति शक्तिहीन हो जाता है। अन्न हमें तभी शक्ति प्रदान करता है जबकि हम उपवास का पालन करते हैं।
अन्न से ही हमारा शरीर बनता है और अन्न से ही यह शरीर बिगड़ भी सकता है अत: अन्न का भक्षण धार्मिक रीति अनुसार करना चाहिए।
अन्न के बारे में यह आलेख जरूर पढ़ें... भोजन करते वक्त इन बातों का ध्यान रखना जरूरी.
.. धरती मां : पृथ्वी अन्न से भी बड़ी है। वह हमारी माता है। हमारी दो प्रकार की माताएं होती हैं। एक तो भौतिक माता जो हमारी जननी है और दूसरी पृथ्वी माता है (जो हमें गर्भाशय से मृत्युपर्यंत पालती है)।
पुराणों अनुसार हम हमारी भौतिक माता के गर्भ से निकलकर धरती माता के गर्भाशय में प्रविष्ट हो जाते हैं। यह माता हमारा लालन-पालन करती है। यह धरती हमें विभिन्न वनस्पतियां देकर हमारा पोषण करती है। उसे वेद-पुराण में धेनु कहते हैं (कामधेनु एक ऐसी गाय है, जो ऋषि वशिष्ठ से संबंधित थी और संपूर्ण कामना पूर्ण कर देती थी)।
यह धरती हमारा ही नहीं, बल्कि समस्त जीव-जंतु, पेड़-पौधे, जलचर, थलचर, नभचर, उभयचर आदि सभी जीवों को समान रूप से पालती है और उन्हें संपूर्ण उम्र तक जिंदा बनाए रखने का प्रयास करती है, लेकिन मानव अपनी इस माता पर तरह-तरह के अत्याचार करता रहता है।
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जल से धरती की उत्पत्ति हुई : सचमुच ऐसा ही हुआ। जलता हुआ जल कहीं जमकर बर्फ बना तो कहीं भयानक अग्नि के कारण काला कार्बन होकर धरती बनता गया। कहना चाहिए कि ज्वालामुखी बनकर ठंडा होते गया। अब आप देख भी सकते हैं कि धरती आज भी भीतर से जल रही है और हजारों किलोमीटर तक बर्फ भी जमी है। धरती पर 75 प्रतिशत जल ही तो है। कोई कैसे सोच सकता है कि जल भी जलता होगा या वायु भी जलती होगी?
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अग्नि से जल की उत्पत्ति : ब्रह्मांड में विराट अग्नि के गोले देखे जा सकते हैं, धरती भी अग्नि का एक गोला थी। अग्नि से ही जल तत्व की उत्पत्ति हुई। अंतरिक्ष में आज भी ऐसे समुद्र घुम रहे हैं जिनके पास अपनी कोई धरती नहीं है लेकिन जिनके भीतर धरती बनने की प्रक्रिया चल रही है और जो कभी अग्नि के समुद्र थे।
जल से बड़ा यह अग्नि तत्व है, जो कि सारे ब्रह्माण्ड को चला रहा है जिसने सारे संसार में चेतना का प्रसार कर रखा है। अग्नि तत्व के कारण वर्षा होती है जिससे हर प्रकार का अन्न पैदा होता है। जब यह समुद्र पर कार्य करती है तो वाष्प बनती है जिससे बादल बनते हैं, जो वर्षा का कारण होते हैं। वर्षा से वनस्पति जगत उत्पन्न होता है।
प्रत्येक व्यक्ति के भीतर अग्नि तत्व होता है। अग्नि से ही बल मिलता है इसीलिए हिंदू धर्म में अग्नि की पूजा होती है, प्रार्थना होती है और यज्ञ किए जाते हैं। घर-घर दीपक इसीलिए जलाए जाते हैं कि हमें अग्नि का महत्व ज्ञात रहे। अग्निदेव साक्षात हमारे बीच रहते हैं।
वायु में ही अग्नि और जल तत्व छुपे हुए रूप में रहते हैं। वायु ठंडी होकर जल बन जाती है व गर्म होकर अग्नि का रूप धारण कर लेती है। वायु का वायु से घर्षण होने से अग्नि की उत्पत्ति हुई। अग्नि की उत्पत्ति ब्रह्मांड की सबसे बड़ी घटना थी। वायु जब तेज गति से चलती है तो धरती जैसे ग्रहों को उड़ाने की ताकत रखती है। वायु धरती पर भी है और धरती के बाहर अंतरिक्ष में भी प्रत्येक ग्रह पर वायु है और प्रत्येक ग्रह की वायु भिन्न-भिन्न है। वेदों में 8 तरह की वायु का वर्णन मिलता है।
आप सोचिए कि सूर्य से धरती तक जो सौर्य तूफान आता है वह किसकी शक्ति से यहां तक आता है? संपूर्ण ब्रह्मांड में वायु का साम्राज्य है, लेकिन हमारी धरती की वायु और अंतरिक्ष की वायु में फर्क है।
वायु को ब्रह्मांड का प्राण और आयु कहा जाता है। शरीर और हमारे बीच वायु का सेतु है। शरीर से वायु के निकल जाने को ही प्राण निकलना कहते हैं।
आकाश अर्थात वायुमंडल का घेरा- स्काई। खाली स्थान अर्थात स्पेस। जब हम खाली स्थान की बात करते हैं तो वहां अणु का एक कण भी नहीं होना चाहिए, तभी तो उसे खाली स्थान कहेंगे। है ना? हमारे आकाश-अंतरिक्ष में तो हजारों अणु-परमाणु घूम रहे हैं।
अंतरिक्ष को खाली स्थान माना जाता है यानी स्पेस। खाली स्थान को अवकाश कहते हैं। अवकाश था तभी आकाश की उत्पत्ति हुई अर्थात अवकाश से आकाश बना। अवकाश अर्थात अनंत अंधकार। अनंत अंतरिक्ष। अंधकार के विपरीत प्रकाश होता है, लेकिन यहां जिस अंधकार की बात कही जा रही है उसे समझना थोड़ा कठिन जरूर है। यही अद्वैतवादी सिद्धांत है।
अंतरिक्ष को सबसे महान माना गया है। ऊपर देखो और ऊपर से ही कुछ मांगो। नीचे मूर्ति या मंदिर में प्रार्थना करने वाले क्या यह जानते हैं कि वैदिक ऋषि ऊपर वाले की ही प्रार्थना करते थे। ध्यान लगाकर वे अपने भीतर के अंतरिक्ष को खोजते थे।
अंतरिक्ष से सब कुछ प्राप्त किया जाता जाता है और अपनी बुद्धि के अनुसार इनको ग्रहण किया जाता है। मेधा बुद्धि का संबंध अंतरिक्ष से होता है। अंतरिक्ष हमारी बुद्धि को बढ़ाने वाला है। यह हमारे भीतर जीवन को प्रबल करता है। इसी से वायु को गति मिलती है। इसी में अग्नि भी विद्यमान रहती है।
ब्रह्मांड में सबसे बड़ा क्या?
उपनिषदों में प्रश्न-उत्तरों के माध्यम से ऋषियों ने इस ब्रह्मांड के रहस्य को अपने शिष्यों के सामने उजागर किया और फिर अपनी शिक्षाओं में उन्होंने सत्य, अहिंसा, ब्रह्मचर्य आदि की शिक्षा दी। उनकी तमाम शिक्षाओं में भी ब्रह्मचर्य को उन्होंने सबसे प्रधान माना। ब्रह्मचर्य को उन्होंने जीवन में सबसे महत्वपूर्ण माना।
ब्रह्मचर्य से बढ़कर कुछ नहीं। ब्रह्मचर्य से शक्ति, सेहत और समृद्धि मिलती है, लेकिन ब्रह्मचर्य से बढ़कर भी कुछ है।
अन्न से ही हमारा शरीर बनता है और अन्न से ही यह शरीर बिगड़ भी सकता है अत: अन्न का भक्षण धार्मिक रीति अनुसार करना चाहिए।
अन्न के बारे में यह आलेख जरूर पढ़ें... भोजन करते वक्त इन बातों का ध्यान रखना जरूरी.
पुराणों अनुसार हम हमारी भौतिक माता के गर्भ से निकलकर धरती माता के गर्भाशय में प्रविष्ट हो जाते हैं। यह माता हमारा लालन-पालन करती है। यह धरती हमें विभिन्न वनस्पतियां देकर हमारा पोषण करती है। उसे वेद-पुराण में धेनु कहते हैं (कामधेनु एक ऐसी गाय है, जो ऋषि वशिष्ठ से संबंधित थी और संपूर्ण कामना पूर्ण कर देती थी)।
यह धरती हमारा ही नहीं, बल्कि समस्त जीव-जंतु, पेड़-पौधे, जलचर, थलचर, नभचर, उभयचर आदि सभी जीवों को समान रूप से पालती है और उन्हें संपूर्ण उम्र तक जिंदा बनाए रखने का प्रयास करती है, लेकिन मानव अपनी इस माता पर तरह-तरह के अत्याचार करता रहता है।
अगले पन्ने पर जानिए धरती से बढ़कर क्या. 
हिंदू धर्म में नदियों की पूजा इसीलिए की जाती है। जल नहीं होता तो जीवन भी नहीं होता। जल के देवता वरुण और इंद्र की वेदों में स्तुतियां मिल जाएंगी। जल को सबसे महत्वपूर्ण तत्व माना जाता है। जल उतना ही जाग्रत और बोध करने वाला तत्व है जितना कि मानव सोच-समझ सकता है। जीवों को उत्पन्न करने वाली धरती कैसे निर्जीव मानी जा सकती है और धरती को उत्पन्न करने वाला जल कैसे सिर्फ एक पदार्थ माना जा सकता है। 
जल से बड़ा यह अग्नि तत्व है, जो कि सारे ब्रह्माण्ड को चला रहा है जिसने सारे संसार में चेतना का प्रसार कर रखा है। अग्नि तत्व के कारण वर्षा होती है जिससे हर प्रकार का अन्न पैदा होता है। जब यह समुद्र पर कार्य करती है तो वाष्प बनती है जिससे बादल बनते हैं, जो वर्षा का कारण होते हैं। वर्षा से वनस्पति जगत उत्पन्न होता है।
प्रत्येक व्यक्ति के भीतर अग्नि तत्व होता है। अग्नि से ही बल मिलता है इसीलिए हिंदू धर्म में अग्नि की पूजा होती है, प्रार्थना होती है और यज्ञ किए जाते हैं। घर-घर दीपक इसीलिए जलाए जाते हैं कि हमें अग्नि का महत्व ज्ञात रहे। अग्निदेव साक्षात हमारे बीच रहते हैं।
अगले पन्ने पर पढ़े अग्नि से बढ़कर क्या है... अग्नि से बढ़कर है वायु : धरती के 75 प्रतिशत भाग में जल है व 100 प्रतिशत वायु है। वायु हर जगह है। समुद्र के भीतर भी और धरती से सैकड़ों किलोमीटर ऊपर भी। वायु की सत्ता सबसे बड़ी है। वायु के बगैर व्यक्ति एक क्षण भी जिंदा नहीं रह सकता। यही हमारे प्राण हैं।
वायु में ही अग्नि और जल तत्व छुपे हुए रूप में रहते हैं। वायु ठंडी होकर जल बन जाती है व गर्म होकर अग्नि का रूप धारण कर लेती है। वायु का वायु से घर्षण होने से अग्नि की उत्पत्ति हुई। अग्नि की उत्पत्ति ब्रह्मांड की सबसे बड़ी घटना थी। वायु जब तेज गति से चलती है तो धरती जैसे ग्रहों को उड़ाने की ताकत रखती है। वायु धरती पर भी है और धरती के बाहर अंतरिक्ष में भी प्रत्येक ग्रह पर वायु है और प्रत्येक ग्रह की वायु भिन्न-भिन्न है। वेदों में 8 तरह की वायु का वर्णन मिलता है।
आप सोचिए कि सूर्य से धरती तक जो सौर्य तूफान आता है वह किसकी शक्ति से यहां तक आता है? संपूर्ण ब्रह्मांड में वायु का साम्राज्य है, लेकिन हमारी धरती की वायु और अंतरिक्ष की वायु में फर्क है।
वायु को ब्रह्मांड का प्राण और आयु कहा जाता है। शरीर और हमारे बीच वायु का सेतु है। शरीर से वायु के निकल जाने को ही प्राण निकलना कहते हैं।
वायु से बढ़कर भी कुछ है,. आकाश तत्व : बहुत से दार्शनिक आकाश को अनुमान ही मानते हैं। आकाश से वायु की उत्पत्ति हुई। आकाश एक अनुमान है। दिखाई देता है लेकिन पकड़ में नहीं आता। धरती के एक सूत ऊपर से, ऊपर जहां तक नजर जाती है उसे आकाश ही माना जाता है।
आकाश अर्थात वायुमंडल का घेरा- स्काई। खाली स्थान अर्थात स्पेस। जब हम खाली स्थान की बात करते हैं तो वहां अणु का एक कण भी नहीं होना चाहिए, तभी तो उसे खाली स्थान कहेंगे। है ना? हमारे आकाश-अंतरिक्ष में तो हजारों अणु-परमाणु घूम रहे हैं।
अगले पन्ने पर पढ़ें आकाश से बढ़कर क्या अंतरिक्ष : अंतरिक्ष अग्नि, वायु और आकाश से महान है। हम जो भी शब्द उच्चारण करते हैं वे इस अंतरिक्ष में विचरण करते रहते हैं। आकाश में वायु साक्षात है लेकिन अंतरिक्ष में वायु सूक्ष्म रूप है। अंतरिक्ष ही सभी का आधार है। सभी ग्रह-नक्षत्र अंतरिक्ष के बल पर ही स्थिर और चलायमान हैं।
अंतरिक्ष को खाली स्थान माना जाता है यानी स्पेस। खाली स्थान को अवकाश कहते हैं। अवकाश था तभी आकाश की उत्पत्ति हुई अर्थात अवकाश से आकाश बना। अवकाश अर्थात अनंत अंधकार। अनंत अंतरिक्ष। अंधकार के विपरीत प्रकाश होता है, लेकिन यहां जिस अंधकार की बात कही जा रही है उसे समझना थोड़ा कठिन जरूर है। यही अद्वैतवादी सिद्धांत है।
अंतरिक्ष को सबसे महान माना गया है। ऊपर देखो और ऊपर से ही कुछ मांगो। नीचे मूर्ति या मंदिर में प्रार्थना करने वाले क्या यह जानते हैं कि वैदिक ऋषि ऊपर वाले की ही प्रार्थना करते थे। ध्यान लगाकर वे अपने भीतर के अंतरिक्ष को खोजते थे।
अंतरिक्ष से सब कुछ प्राप्त किया जाता जाता है और अपनी बुद्धि के अनुसार इनको ग्रहण किया जाता है। मेधा बुद्धि का संबंध अंतरिक्ष से होता है। अंतरिक्ष हमारी बुद्धि को बढ़ाने वाला है। यह हमारे भीतर जीवन को प्रबल करता है। इसी से वायु को गति मिलती है। इसी में अग्नि भी विद्यमान रहती है।
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